रात आधी
नींद आधी
जागती थी चेतना
चेतना का मन
आधा भरा
छलका आधा
चेतना की तंद्रा को
झटका सा लगा था
बिजली का
बिजली की अचानक
गैरमौजूदगी से
आधी खुली खिड़कियों से
आती थी
आधी तेज
आधी धीमी
आधी हवा
कुछ बरसा पानी
आधा भारी
आधा धीमा
बिजलियों के नन्हें बच्चे भी
चक्कर काट रहे थे
बादलों की
अंगुलियाँ पकड़
आसमान के पार्क में
आधा लेटा
याने अध-लेटा
आधा उठा
बैठा आधा
दिखा पैड आधा
और बिना कैप की
पेन आधी
पाँच हजार वर्षों की
सभ्यता का
मुझे धुँधला सा
पता है
वह भी
सुनी-सुनाई
सूचनाओं के बतौर
वह भी
मात्र आधी अवधि का
बहुत सी
स्टाम्प-पेपरों पर
टँक कर जैसे
चीजें बन जाती हैं सत्य
और
कानूनन सत्य भी
हमारे बहुत से ज्ञात
ऐतिहासिक सत्य
ऐसे ही
स्टाम्प-पेपरों पर दर्ज
सत्ताओं के फ़रमान हैं
आस्थाओं के
हवामहलों पर लहराते
आसमानों के
निशान हैं
अलबत्ता अधकचरा है
अब तक बटोरा सहेजा ज्ञान
यूँ तो कचरे से
बिजली बनाने की बात
लिखी-पढ़ी जा रही है
वैसे कचरा भी
सही ढंग का हो
तो कुछ न कुछ
काम आता है
मनुष्य रूपी कचरे पर
मक्खियाँ नहीं भिनभिनातीं
मच्छर भुनभुनाते हैं
मच्छरों को मारना
या हमारी क्रियाओं से
उनका दुर्घटनावश मर जाना
fहंसा है
हमारा पक्ष होता है कि
हम मच्छरों को मारने
उनके पास नहीं जाते
अलबत्ता वो ही पास आते हैं
इसीलिये बेचारे
मारे जाते हैं
यह देह देश को बचाने जैसा
पुनीत कार्य है
यह fहंसा को सत्य और
कर्म-जन्य सत्य
करार देने का
पारम्परिक और विधिक आधार है
तभी बात कौंधी
बिजली जाती है तो
अँधेरों के जीवधारी अंश
लपकते हैं
मनुष्य-देह की ओर
आखिर हम
ईश्वर तक के साँचे हैं
अँधेरों के जीवधारी अंशों का
आसुरी संहार fहंसा नहीं
धर्म युद्ध है
यह हिंसा को सत्य और
मूल्यगत सत्य
करार देने का
धार्मिक आधार है
चौका मैं
मुझे कुछ ज्यादा ही
काटते हैं मच्छर
मेरी देह से फूटता है
क्या कोई
प्रकाश ज्यादा
जिसके अंधःगर्त के
अंदर का अंधकार
करता है आकर्षित
अपने जीन-सम्बन्धियों को
परम्परा से,
विष पीते-उगलते
जीवित अँधेरों को
आवाज उठाते ही
घोंट दिये जाते हैं गले
सारी दुनिया जो
अकेले ही हड़पनी है हमें
किसी को नहीं
कोई बँटवारा
हिंसा को सत्य
और आवश्यक सत्य
बताने का यह
दार्शनिक आधार है
हिंसा इसीलिये बची है
क्योंकि
जितनी बड़ी होती है fहंसा
उससे बड़े ढाल होते हैं
पास हिंसा के
धार्मिक, पारम्परिक, विधिक
और दार्शनिक आधारों के
अँधेरों को
प्रकाश की मार से
बचने के लिये
प्रकाश की ही
ओट मिलती है
प्रकाश की ही
ओट मिलती है
अँधेरों को
छिपने के लिये
आधा अँधेरा
आधा उजाला
आधे दिखते
आधे छिपते
आधे-आधे
अँधेरों-उजालों के
आधे-अधूरे
दलालों को
झाड़ कर सारे
गर्द-जाले
पूरे उजाले में
सारी दुनिया के
सामने लाना है
फिर से
सारी दुनिया के लिये
सूरज को एक सा
सबका, और सबके लिये
बनाना है
हवामहलों की धुँध
तिरोहित करने
एक पूरा का पूरा
नया से नया
सूरज उगाना है
नींद आधी
जागती थी चेतना
चेतना का मन
आधा भरा
छलका आधा
चेतना की तंद्रा को
झटका सा लगा था
बिजली का
बिजली की अचानक
गैरमौजूदगी से
आधी खुली खिड़कियों से
आती थी
आधी तेज
आधी धीमी
आधी हवा
कुछ बरसा पानी
आधा भारी
आधा धीमा
बिजलियों के नन्हें बच्चे भी
चक्कर काट रहे थे
बादलों की
अंगुलियाँ पकड़
आसमान के पार्क में
आधा लेटा
याने अध-लेटा
आधा उठा
बैठा आधा
दिखा पैड आधा
और बिना कैप की
पेन आधी
पाँच हजार वर्षों की
सभ्यता का
मुझे धुँधला सा
पता है
वह भी
सुनी-सुनाई
सूचनाओं के बतौर
वह भी
मात्र आधी अवधि का
बहुत सी
स्टाम्प-पेपरों पर
टँक कर जैसे
चीजें बन जाती हैं सत्य
और
कानूनन सत्य भी
हमारे बहुत से ज्ञात
ऐतिहासिक सत्य
ऐसे ही
स्टाम्प-पेपरों पर दर्ज
सत्ताओं के फ़रमान हैं
आस्थाओं के
हवामहलों पर लहराते
आसमानों के
निशान हैं
अलबत्ता अधकचरा है
अब तक बटोरा सहेजा ज्ञान
यूँ तो कचरे से
बिजली बनाने की बात
लिखी-पढ़ी जा रही है
वैसे कचरा भी
सही ढंग का हो
तो कुछ न कुछ
काम आता है
मनुष्य रूपी कचरे पर
मक्खियाँ नहीं भिनभिनातीं
मच्छर भुनभुनाते हैं
मच्छरों को मारना
या हमारी क्रियाओं से
उनका दुर्घटनावश मर जाना
fहंसा है
हमारा पक्ष होता है कि
हम मच्छरों को मारने
उनके पास नहीं जाते
अलबत्ता वो ही पास आते हैं
इसीलिये बेचारे
मारे जाते हैं
यह देह देश को बचाने जैसा
पुनीत कार्य है
यह fहंसा को सत्य और
कर्म-जन्य सत्य
करार देने का
पारम्परिक और विधिक आधार है
तभी बात कौंधी
बिजली जाती है तो
अँधेरों के जीवधारी अंश
लपकते हैं
मनुष्य-देह की ओर
आखिर हम
ईश्वर तक के साँचे हैं
अँधेरों के जीवधारी अंशों का
आसुरी संहार fहंसा नहीं
धर्म युद्ध है
यह हिंसा को सत्य और
मूल्यगत सत्य
करार देने का
धार्मिक आधार है
चौका मैं
मुझे कुछ ज्यादा ही
काटते हैं मच्छर
मेरी देह से फूटता है
क्या कोई
प्रकाश ज्यादा
जिसके अंधःगर्त के
अंदर का अंधकार
करता है आकर्षित
अपने जीन-सम्बन्धियों को
परम्परा से,
विष पीते-उगलते
जीवित अँधेरों को
आवाज उठाते ही
घोंट दिये जाते हैं गले
सारी दुनिया जो
अकेले ही हड़पनी है हमें
किसी को नहीं
कोई बँटवारा
हिंसा को सत्य
और आवश्यक सत्य
बताने का यह
दार्शनिक आधार है
हिंसा इसीलिये बची है
क्योंकि
जितनी बड़ी होती है fहंसा
उससे बड़े ढाल होते हैं
पास हिंसा के
धार्मिक, पारम्परिक, विधिक
और दार्शनिक आधारों के
अँधेरों को
प्रकाश की मार से
बचने के लिये
प्रकाश की ही
ओट मिलती है
प्रकाश की ही
ओट मिलती है
अँधेरों को
छिपने के लिये
आधा अँधेरा
आधा उजाला
आधे दिखते
आधे छिपते
आधे-आधे
अँधेरों-उजालों के
आधे-अधूरे
दलालों को
झाड़ कर सारे
गर्द-जाले
पूरे उजाले में
सारी दुनिया के
सामने लाना है
फिर से
सारी दुनिया के लिये
सूरज को एक सा
सबका, और सबके लिये
बनाना है
हवामहलों की धुँध
तिरोहित करने
एक पूरा का पूरा
नया से नया
सूरज उगाना है
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