जिन चीजों को
छू सकते हैं हम
उन्हें खो देते हैं
कभी नहीं मिलतीं
कुछ चीजें / जिन्हें
छूना चाहते हैं हम
मसलन खुशी
हमारे बाद का हमारा समय
और तितली भी
क़ागज की नाव
बचपन की पहली रचना
पहली तकनीक सिद्धता
उसी नाव पर अब लादते हैं शब्द
कुछ चुनकर / कुछ अनगढ़ / कुछ अनचाहे
कुछ हैं जो छूना चाहते हैं इसे
पर कभी नहीं मिलती / फिर कभी
कागज की नाव
जिसके बहने के साथ
बह जाती है निजता
बह जाता है हक़ मालिकाना
शब्दों की सवारी का
क्या ठिकाना
नहीं सीख पाये हम
स्मृतियों को छूना
जब जी चाहे / जिसे चाहें
स्मृतियाँ अपनी इच्छा से
आती जाती हैं
नहीं सीख पाया मैं
स्मृतियों को लुभाने के लिये
आज तक
कोई एक नाव बनाने की कला
सकुचाते हैं हाथ बुद्धि के
सिकुड़ जाते हैं
जब स्मृतियाँ आती हैं पास
संतोष बस इतना ही
डर नहीं / स्मृतियों के खो जाने का
क्योंकि खो देते हैं हम / उन चीजों को
छू देते हैं जिन्हें
चाहते हुये भी छू नहीं पाते
मसलन प्रकाश
हमारे अज्ञान की सीमा
और क्षितिज भी
अशोक सिंघई
समुद्र चॉंद और मैं कविता संग्रह से ...
No comments:
Post a Comment
हमारा यह प्रयास यदि सार्थक है तो हमें टिप्पणियों के द्वारा अवश्य अवगत करावें, किसी भी प्रकार के सुधार संबंधी सुझाव व आलोचनाओं का हम स्वागत करते हैं .....