Friday, October 21, 2011

ममता का स्वेटर

बचपन की बहुत सी यादों के साथ
एक काली, बुनी हुई स्वेटर
आज भी चिपकी रहती है
मेरे तन-मन से
कितनी भी ठंड हो
नहीं लगती मुझे

उसके एक-एक फंदे में
पिरोई हुई है ममता
उसके एक-एक रेशे में
गंध है उष्ण दूध की
नज़र न लगे किसी की
कोई उठाईगीर उठा न ले
मेरा समृद्ध संसार
छीन न ले उसे मुझसे
इसीलिये सबकी निगाहों से छिपाकर
अंदर ही पहनता हूँ उसे
सीने से सटाये
अपनी मौसी के सीने से
स्वयं को सटा हुआ महसूस करने के लिये

उसे पहन कर बन जाता हूँ मैं
फिर एक किशोर
माँ की गोद से उड़ कर
मौसी की बाहों में सिमटा
नहीं आते कोई डरावने स्वप्न
नींद आती है भरपूर
लगता मानों थपथपा रही है
मेरी मौसी मेरी पीठ
और मुँदने लगती है आँखें स्वतः ही

जब से गई है मौसी
इस धरा को छोड़ कर
वह काली स्वेटर
और अधिक गर्माने लगी है
अहसास से पुरसकून नहीं होती
कोई भी चीज

मेरा प्यार कहता
मुझे दे दो यह स्वेटर
मैं बंद कर दूँगी इसके छेद
सँवार दूँगी सारी उधेड़न
यह धरोहर है किसी की
इसे जतन से सम्भालो

मुझ प्रौढ़ के अंदर
जाग जाता वही हठी किशोर
जो छूने भी नहीं देता अपनी
कोई भी चीज, किसी को भी

मालूम है मुझे
मिलेगी मेरी मौसी मुझे
कभी किसी और दुनिया में
वही फिर बुनेगी इस स्वेटर को
दुबारा मेरे लिये
वहाँ का मौसम, वहाँ की ज़रूरतें
अपने बच्चे के लिये
कौन जान सकता है
माँ से भला ज्यादा

साथ कुछ नहीं जाता
ऐसा सुना और पढ़ा है
सारी नेमतों, दुआओं और
कर्मों के बदले
मैं ले जाना चाहता हूँ
यह स्वेटर साथ अपने

इसे अंतिम इच्छा कहें, वसीयत कहें
इसे मानें मेरे बाद वारिस मेरे
मेरे साथ रखें मेरी स्वेटर
मेरी सुनिश्चित और ज्ञात अंतिम यात्रा में
एक अनबूझी नई यात्रा में
थपकियों से भरी गर्माहट के लिये

जानता हूँ मैं
जितना मैं व्यग्र हूँ
उससे कहीं अधिक परेशान होगी वहाँ
मेरी मौसी
मेरी स्वेटर सुधारने के लिये

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