पर्वतों के
कई राज हैं
कई कहानियाँ हैं
नदियों के पास
छिपी रहती है आग
स्मृतियों के जंगल में
कौन खोज और बुझा पाया
बसने के पहले
खूब भटका है आदमी
रुकने के पहले
खूब दौड़ा है आदमी
शब्दों की मशालों ने
दूर से ही
पगडंडियों के काँटों को दिखाया
कुछ ख़ास देखा नहीं
कुछ विशेष सुना नहीं
न ही जान पाया कुछ
जो भी हाथ आया
सीप / मोती / काँटे या फूल
खुद-ब-खुद आया
आसमान छल है
इसीलिये तारे लुभावने
कितनी विशाल है
माया की काया
काल घनघोर घुमावदार गलियारा
तितलियों ने खूब छकाया
खेल हैं सूरज के सारे
इन्द्रधनुषों के जाल
और परदे बादलों के खूब पसारे
तीखी धूप का धमकना जबरिया
जिन्दगी का पता नहीं
कितना लम्बा है साया
अशोक सिंघई
समुद्र चॉंद और मैं कविता संग्रह से ...
सामग्री चयन के लिए उपलब्धता के बजाय उसके सर्वकालिक महत्व को प्राथमिकता देना बेहतर होगा.
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