Sunday, October 23, 2011

आवश्यकताओं का समानुपात

सब कुछ होता जाता है शान्त
शाम के साथ / धीरे-धीरे
इतना शान्त कि
पड़ने लगती है सुनाई
आवाज सन्नाटे की

देर रात
घर का दरवाजा खोलता हूँ मैं
कुछ देर टहलने बाहर
सन्नाटे के साथ
मेरे भीतर के शोर को
कुछ तो मिले संगत / सन्नाटे की

बरामदे में लेटा कुत्ता
हो जाता विस्थापित
मेरी मात्र आहट से
पहले भोंकता था
फिर कूकने लगा
अब हट जाता है खामोश

एक झेंप महसूस करता
चेहरा मेरा
टोकता ज़मीर
आखिर कर दिया ना उतना ही बड़ा कुकृत्य
जितना करती है एक हवेली
एक बगीचे के लिये

घर की व्यवस्था में
जोड़ी मैने एक उपधारा
रात्रि को कोई भी न खोले
बारबार मुख्य दरवाजा
नई पीढ़ी तुरन्त सुर में आई
जरूरत में भी नहीं?
मैंने कहा - जरूर
जरूरत हो / तब ही

आवश्यकताओं का समानुपात है एक अनिवार्यता
अपनी आवश्कताओं के साथ
दूसरों की आवश्यकताओं का जितना ख्याल
उतनी ही सुसंस्कृत होती है सभ्यता

हर किसी को मिलनी चाहिये
दुनिया में उसकी गुफा
उसका कोना
और उसका होना

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