Monday, October 3, 2011

दो पाटों के बीच

बड़े काम की चीज़ है
अचार
जितना तीखा
उतना मीठा

क़िफायत
और ऐहतियात के साथ
करते हैं इसका प्रयोग
न बन सके सब्जी
या न नसीब हो
पकी हुई दाल
यही काम आता है
और वो भी
अक्सर

इसकी गंध भी
इसका स्वाद है
पुराना होता जाता है
कहते हैं बन जाता है दवा
काश मिले किसी ज़ोदड़ो की खुदाई में
अचार का कोई एक भरा मर्तबान
कसम से
अमृत बन गया होगा अब तक

हम तो निकाल डालते हैं
गड़े मुर्दों तक को
उनकी आरामगाह से बाहर
आज के समय में ज़नाब
मुर्दे भी नहीं सो सकते बेख़ौफ़

जिन्दों से मुर्दों तक और
मुर्दों से जिन्दों तक
बदल गये हैं सभी
बाज़ार के जिंस में

मूल्य के मायने
बाज़ार-भाव की व्यंजना तक
वामनावतार हो गये हैं
कब सिकुड़ जायें
कब फट पड़ने तक फैल जायें
कोई नहीं जानता

कभी वामन-विराट-वामन
बनने वाला तक नहीं जानता
इतना मायावी है फिर भी
अब बहुत नहीं डालता अपनी टांग
दूसरे के फटे में

शायद सोचता होगा वह
अपना मंदिर
अपना गुरुद्वारा
अपना चर्च, मस्ज़िद अपनी
याने अपने सारे के सारे घर
पूरी तरह सुरक्षित हैं
लिपे-पुते हैं
महकते रहते हैं
चमकते रहते हैं

गंध का रूप धारण कर
मर्तबानों से अचार
आते हैं मुख तक
याने मायावी सत्ता के पास से पास
आखिर उनको भी कुछ तो हक़ है
अच्छी जगह में कुछ साँसे लेने का

वह इतना सोचता है
वह इतना सोचने का कष्ट करता है
इसलिये दयालु है, कृपालु है
पहचान नहीं पाते उसे लोग
दरअसल नमक है वह
जैसे होता है जीवन में सुख
वह बचाता है
वह सडा़ता भी है
क्षण-क्षण गलाता भी है
भौतिक सत्ताओं को सताता भी है
किसी फ़कीर का नमक सत्याग्रह बनकर

मैं अचार से जनता तक भटकता हूँ
दरअसल गलतफ़हमी हो जाती है मुझे
अचार जनता है
या जनता अचार है
या जनता जनता है
और अचार अचार है
पर हो ही जाता है धोखा
और वो भी
अक्‍सर

No comments:

Post a Comment

हमारा यह प्रयास यदि सार्थक है तो हमें टिप्‍पणियों के द्वारा अवश्‍य अवगत करावें, किसी भी प्रकार के सुधार संबंधी सुझाव व आलोचनाओं का हम स्‍वागत करते हैं .....

Categories

कविता संग्रह (32) अशोक सिंघई (31) समुद्र चॉंद और मैं (30) कहानी संग्रह (13) आदिम लोक जीवन (8) लोक कला व थियेटर (8) Habib Tanvir (7) उपन्‍यास (6) छत्‍तीसगढ़ (6) गजानन माधव मुक्तिबोध (5) नेमीचंद्र जैन (5) पदुमलाल पुन्‍नालाल बख्‍शी (5) रमेश चंद्र महरोत्रा (5) रमेश चंद्र मेहरोत्रा (5) व्‍यंग्‍य (5) RAI BAHADUR HlRA LAL (4) RUSSELL (4) TRIBES AND CASTES (4) वेरियर एल्विन (4) सरला शर्मा (4) गिरीश पंकज (3) जया जादवानी (3) विनोद कुमार शुक्‍ल (3) अजीत जोगी (2) अवधि (2) अवधी (2) गुलशेर अहमद 'शानी' (2) छंद शास्‍त्र (2) जगन्‍नाथ प्रसाद भानु (2) जमुना प्रसाद कसार (2) जय प्रकाश मानस (2) डॉ. परदेशीराम वर्मा (2) डॉ.परदेशीराम वर्मा (2) परितोष चक्रवर्ती (2) माधवराव सप्रे (2) मेहरून्निशा परवेज़ (2) लोकोक्ति (2) संस्‍मरण (2) Pt.Ramgopal Tiwari (1) Sahakarita Purush (1) W. V. Grigson (1) अनिल किशोर सिन्‍हा (1) अपर्णा आनंद (1) आशारानी व्‍होरा (1) इतिहास (1) कुबेर (1) कैलाश बनवासी (1) चंद्रकांत देवताले (1) चन्द्रबली मिश्रा (1) चम्पेश्वर गोस्वामी (1) छेदीलाल बैरिस्टर (1) डॉ. भगवतीशरण मिश्र (1) डॉ.हिमाशु द्विेदी (1) तीजन बाई (1) दलित विमर्श (1) देवीप्रसाद वर्मा (1) नन्दिता शर्मा (1) नन्‍दकिशोर तिवारी (1) नलिनी श्रीवास्‍तव (1) नारी (1) पं. लखनलाल मिश्र (1) पंडवानी (1) मदन मोहन उपाध्‍याय (1) महावीर अग्रवाल (1) महाश्‍वेता देवी (1) रमेश गजानन मुक्तिबोध (1) रमेश नैयर (1) राकेश कुमार तिवारी (1) राजनारायण मिश्र (1) राम पटवा (1) ललित सुरजन (1) विनोद वर्मा (1) विश्‍व (1) विष्णु प्रभाकर (1) शकुन्‍तला वर्मा (1) श्रीमती अनसूया अग्रवाल (1) श्‍याम सुन्‍दर दुबे (1) संजीव खुदशाह (1) संतोष कुमार शुक्‍ल (1) सतीश जायसवाल (1) सुरेश ऋतुपर्ण (1) हर्ष मन्‍दर (1)

मोर संग चलव रे ....

छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति व साहित्य को बूझने के लिए निरंतर प्रयासरत. ..

छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति व साहित्य को बूझने के लिए निरंतर प्रयासरत. ..
संजीव तिवारी